कहावत चल रही है, लीक छोड़कर तीन चलें, शायर, सिंह,सपूत।
सिंह तो अब बचे नहीं, तमाम अभयारण्यों से खबरें आ रही हैं कि सिंह अब देखने को भी नहीं बचे हैं। लीक क्या छोड़ेंगे, सिंह तो दुनिया ही छोड़ गये।
शायरों पर बहुत बुरी बीत रही है। उन्हे देखकर ही लोग लीक यानी रास्ता बदल रहे हैं। शायरों को सुनने वाले बचे नहीं, और एक शायर दूसरे शायर को कभी सुनता ही नहीं। शायर दूसरे शायर को देखकर रास्ता बदल देता था, अब पब्लिक भी ऐसा ही करने लग गयी है। पब्लिक व्यवहार में शायरों के लेवल पर आ रही है, इसे पब्लिक का पतन कहें या उत्थान, आप ही सोचिये।
सपूत इधर के सारे हाल तक एक ही लीक पर ही चल रहे थे, सीधे अमेरिका में जाकर सैटल हो रहे हैं। मंदी की मार में अमेरिका से वापस इंडिया आ रहे हैं। पर इंडिया वापस आने में उनके सपूतत्व का कम और मंदी का ज्यादा योगदान है। सपूतत्व तो सबको एक ही लीक पर चला रहा था-टू यूएसए। मंदी ने लीक बदलवा दी है, कईयों की। जो अमेरिका में साफ्टवेयर बना रहे थे, अब इंडिया में समोसे बनाने की टेकनीक सीख रहे हैं। मंदी में साफ्टवेयर कम बिकता है, पर समोसा मंदीप्रूफ होता है। बल्कि मंदी में ज्यादा बिकता है, जो साफ्टवेयर बनाने में बिजी नहीं होते, वो समोसे ज्यादा खाने लगते हैं। समोसे का महात्म्य समोसे से ज्यादा है। फिर भी पता नहीं, ज्यादातर इंस्टीट्यूट समोसा बनाना नहीं, साफ्टवेयर बनाना सिखाते हैं। एक भी इंस्टीट्यूट ऐसा नहीं मिला, जिसका नाम हो-इंडियन इंस्टीट्यूट आफ समोसा टेकनोलोजी।
लीक बदलने में मंदी के योगदान पर नयी कहावतें हो सकती है। मंदी में टूटा लीक का भरोसा, जो बना रहे थे साफ्टवेयर, अब बनायें समोसा। काहे का यूएसए काहे की लीक, जो नोट कमवाये, सो समोसा ही ठीक। साफ्टवेयर से होते ना गुजारे, सो चलो समोसे के सहारे।
खैर बात समोसे की नहीं, लीक की हो रही थी।
अब लीक कौन बना रहा है।
लीक यानी नयी सड़कों को देखें, तो पहले तो यही पता लगता है कि इस साल बनती हैं, अगले साल फिर नयी बनानी पड़ती हैं। स्थानीय नेता और सड़क बनाऊ अफसरों की कृपा से इतनी हर साल नयी लीक बन रही है। एक कहावत यूं हो सकती है-नयी लीक बनाने वाले नये लोग ही हैं सर, नेता, सड़क बनाऊ और सड़क खाऊ अफसर। नयी लीक पर दो चलें-नेता और अफसर।
चलूं, घर के सामने नयी लीक देख आऊं, कल ही उद्घाटित हुई है, क्या पता कल तक बचेगी भी या नहीं।
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